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आदर्श जीवन |
गंगामाता बोली:- " अच्छी बात है । आप कुछ दिनोंके मस्त लूणसावाड़े में पधारिए और वल्लभविजयजी महाराजको ठहरनेकी आज्ञा दे दीजिए। "
श्रीहंसविजयजी महाराजकी आज्ञासे हमारे चरित्रनायक उजमबाईकी धर्मशाला में ठहर गये । कुछ दिनोंके बाद अपने से विहार करनेकी तैयारी की ; मगर विहार न कर कि । अमदाबादके श्रावकोंकी, आग्रह और भक्तिभावपूर्ण देयके साथ की गई विनती से और खास कर श्रीहंसविजजी महाराजकी इच्छा तथा आज्ञाके कारण आपको चौमासा टीका स्वीकार करना पड़ा ।
उदयपुर (मेवाड ) के लाग भी आपसे चौमासेकी विनती करने आये थे; परन्तु आप जा नहीं सकते थे इस लिए आपने पंन्यासजी श्री सोहनविजयजी, मुनि श्रीउमंगविजयजी, मुनि श्री मित्रविजयजी, मुनि श्रीसमुद्रविजयजी मुनि श्रीसागरविजयजी और मुनि श्री रविविजयजी ऐसे छः साधुओंको चौमासा करने के लिए उदयपुर भेज दिया और आप वहीं अहमदाबादहीमें उजमवाईकी धर्मशाला में चातुर्मासार्थ ठहर गये ।
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उस समय यद्यपि व्यापार अच्छा चमक रहा था, व्यापारी लोगोंके पास पैसा भी अच्छा था तथापि अन्यान्य लोग विशेष दरिद्री होते जा रहे थे । कारण बाजारमें चीजोंकी कीमत बढ़ती थी उसका असर साधारण हालतवाले और गरीबोंपर होता था । क्योंकि चीजोंकी बढ़ी हुई कीमत उन्हें ही देनी
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