________________
आदर्श जीवन ।
३०९
इस समय धनकी गंगा बह रही है । समयके परिवर्तनने तुम्हारे हाथों में बहुतसी दौलत दी है । इसका सदुपयोग कर लो। धनका सदुपयोग ही, यानी गरिबोंकी भलाईके लिए खर्चा हुआ धन ही,-परलोकमें साथ जाता है। दूसरा नहीं। मैं असमर्थ सधर्मी. भाइयोंको सहायता देना ही सच्चा साधर्मीवात्सल्य समझता हूँ। अतः पर्युषणोंके अन्तिम दिन तक जो कुछ करना है कर लो । अन्यथा पछताओगे और कहोगे हमने धनका सदुपयोग नहीं किया।"
श्रावकोंने कहा:-" महाराज साहिब ! आपका फर्माना योग्य है; मगर इस वक्त नगरसेठ यहाँ हाजिर नहीं हैं, वरना इसी वक्त कार्य प्रारंभ हो जाता ।" ___आपने कहा:-" तुम शूरू कर दो सेठजीके आने पर उनको मुचना कर देना ।"
जवाब मिला:-" आपका कहना दुरुस्त है, मगर हमारे इस शहरका यह रिवाज है कि नगरसेठके विना, कोई भी ऐसे बड़े किसी भी धर्मकार्यको शुरू नहीं कर सकता है । "
आपने कहाः-" बहुत अच्छा ।"
दुपहरके व्याख्यानमें सेठजी आये । उन्हें सारी बात समझाई गई । सेठजीने जवाब दियाः-"महाराज ! यहाँ तो कोई गरीब नहीं है । सभीके पास अच्छा पैसा है। यदि आपके पास कभी कोई गरीब आवे तो मेरे पास भेज देना । एक हजार आदमियोंको तो मैं धंदेमें लगा दूँगा। विशेष आयँगे तो देख लिया जायगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org