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आदर्श जीवन।
wwwwww बात प्रवर्तकजी महाराज और हमारे चरित्रनायकके संबंध है। इसके लिए हम पाठकोंको प्रवर्तकजी महाराजका वह पत्र पढ़नेका अनुरोध करते हैं जो हमारे चरिनायकके पास सं० १९८१ में आचार्य पद प्रदानके समय, आया था । पत्र पदवी प्रदानके विवरणमें दिया जायगा । __हमारे चरिनायक भी प्रवर्तकजी महाराजके प्रति ऐसे ही भाक रखते हैं जैसे एक आज्ञापालक पुत्र अपने पिताके प्रति रखता है और उनकी हरेक आज्ञाको मानता है । इसके हम, दो उदाहरण देंगे।
पाठक जानते हैं कि, सं० १९५७ में हमारे चरित्रनायकको पदवी प्रदान करनेके लिए पंजाबका सारा संघ और प्रायः सभी साधु तैयार थे; मगर प्रवर्तकजी महाराजकी यह इच्छा न थी। हमारे चरित्रनायकने आपकी इच्छा-परोक्ष आज्ञाको सिर आँखोंपर चढ़ाया और पदवी न ली। - इसी बंबईके चौमासेमें आप खरतर गच्छवालोंके साथ शास्त्रार्थमें न उतरे । इसका कारण, जहाँतक हमें पता चला है, आपकी इच्छासे बढ़कर प्रवर्तकजी महाराजकी आज्ञा थी। . + + + + +
इस चौमासेमें दो भाद्रपद थे खरतर गच्छके मुनि श्रीमणिसागरजी महाराजने उस समय इस बातकी चर्चा प्रारंभ की कि, चौमासा पहले भाद्रपदमें होना चाहिए । खरतर गच्छ और अंचलगच्छवालोंकी तरफ़से हेंडबिल निकलने प्रारंभ हुए।
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