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आदर्श जीवन ।
महाराजने धर्मका बगीचा बोया उसकी हमने सपरिवार रक्षा की । अब हमारे पीछे तुझपर आशा है । गुजरातमें जा, दाल चावल ओसामणमें न पड़, जरा कष्ट उठा कर इस देशमें सपरिवार आओगे और निराधार क्षेत्रमें अमृतदृष्टि करोगे तो महालाभ होगा । गुजरातमें मुनि महाराजोंकी कमी नहीं है । जहाँ कमी है उस क्षेत्रमें दृष्टि करनेसे महालाभ होगा । " वे श्री १००८ गुरुवचनको शिरोधार्य कर, विकट भूमिमें कष्ट उठाकर फिरते हैं । हमारे जैसे तो एक भी, गुरु महाराजके बगीचेमें जलवृष्टिके लिए नहीं जाते हैं । केवल वल्लभविजयजी ही, 'सुखिया ' बिहार छोड़, विकट स्थानों में विचरण करते हैं | उनपर लोग क्यों आक्रमण करते हैं ? इसको मैं नहीं समझ सकता। जिनको अमुक अच्छा नहीं लगता हो उन्हें अनेक उपाय करके भी अमुकपर स्नेह उत्पन्न कराने का प्रयत्न सर्वथा निष्फल है । + + + + ”
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पाठक उपर्युक्त उदाहरणोंसे भली भाँति समझ सकते हैं कि, हमारे चरित्रनायकपर प्रवर्त्तकजी महाराजका कितना स्नेह है ।
पाठक जानते हैं कि लड़का चाहे कितनाही संसारमें पूज्य हो जावे तो भी पिताके हृदयमें तो वह हमेशा उनका प्रिय पुत्र ही रहता है । और जब कभी पुत्र किसी उत्तरदायित्वका I भार लेता है तब पिता पुत्रको उपदेशके वचन कहे विना नहीं रहते और पुत्र उन्हें सिर आँखोंपर चढ़ाता है । ठीक यही
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