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आदर्श जीवन
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प्रवर्तकजी महाराजने फर्माया:-" मोहसे भी अधिक है। उनकी और मेरी आत्माओंका ऐसा ही संबंध है जैसा नाखून और उँगलीका है । "
एक बार किसी विरोधीने 'पंजाब महासभाके ' विषयको लेकर हमारे चरित्रनायकपर आक्षेप किया । उस समय प्रवतकजी महाराजने पंन्यासजी श्रीललितविजयजीको एक पत्र लिखा था। उसमेंका कुछ अंश हम यहाँ उद्भत करते हैं:__ " x x x इन उडती हुई गप्पोंके आधार किसी बातका
आन्दोलन करनेसे क्या धर्मात्माओंको धर्मवृद्धिका लाभ होगा? xxxx और अब मुनि वल्लभविजयजी महाराज गुजरात देशके सुखदाई विहारको छोड़, कष्टदायक क्षेत्रों में फिर धर्मो-- पदेश देते हैं। क्या इसमें इनका कोई स्वार्थ है ? x x x x विना कारण कई उनसे जुदाई रखनेवाले अनुचित हमले करते हैं। उन्हें अपने कर्मबंधनका विचार करना चाहिए। साधु तो समाधि रसमें मग्न हो यही उनके लिए हितकारी है। ___ मैं पंजाबमें था तब श्रीगुरु महाराज स्वर्गवासी नहीं हुए थे। वे निज श्रीमुखसे फर्माते थे,-" मेरे बाद गुजराती साधु, मेरे बोये हुए धर्मबागकी रक्षा करनेवाले, गुजरातमें जा वापिस कष्टकारी क्षेत्रमें आयँगे यह विश्वास मुझे नहीं है । मगर वल्लभ तू छोटी उम्रका है । तुझपर मुझे विश्वास है । तू पंजाबके धर्मक्षेत्रको पुष्ट करना । तू आयगा तो तेरा शिष्य परिवार भी आयगा । पहले श्री १००८ श्री बूटेरायजी
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