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आदर्श जीवन।
गोडीजीके मंदिरमें पहुँचा उस समय पाँच हजार श्रावक श्राविकाएँ थे। एक मारवाड़ी श्रावकने नारियलोंकी प्रभावना की थी। उसमें पाँच हजार नारियल खर्च हुए थे। कइयोंने दोनों महात्माओंको सच्चे मोतियोंसे बधाया था।
इस चौमासेमें प्रवर्तकजी महाराज श्रीकान्तिविजयजी महाराज, हमारे चरित्रनायक, मुनि श्रीचतुरविजयजी महाराज, मुनि श्रीलाभावजयजी महाराज, पं० श्रीसोहनविजयजी महाराज, मुनि श्रीविमलविजयजी महाराज, मुनि श्रीकस्तूरविजयजी महाराज, मुनि श्रीउमंगविजयजी महाराज, मुनि श्रीमेघविजयजी महाराज, मुनि श्रीजिनविजयजी महाराज, मुनि श्रीविज्ञानविजयजी महाराज, मुनि श्रीविद्याविजयजी महाराज, मुनि श्रीविचारविजयजी महाराज, मुनि श्रीपुण्यविजयजी महाराज, मुनि श्रीसमुद्रविजयजी महाराज और मुनि श्रीसागर विजयजी महाराज थे । चौमासा श्रीगोडीजी महाराजके उपाश्रयमें हुआ था।
व्याख्यान हमारे चरित्रनायक ही अक्सर वाँचते थे। आप प्रवर्तकजी महाराजसे प्रायः कहा करते थे,-" कृपानाथ। आप भी व्याख्यानकी कृपा किया कीजिए।"
प्रवर्तकजी महाराज मुस्कुराकर फर्माते:-"भाई गुरु महाराजका खजाना तो तुम्हारे ही पास है। उसमेंसे लोगोंको खुले हाथों क्यों नहीं बाँटते रहते । हमें तो बहुत ही थोड़ी पूँजी मिली थी, उसे हमारे पास संग्रहीत रहने दो।"
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