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आदर्श जीवन ।
“१ - तत्वज्ञानका अभ्यास करो और विचारोंको निर्मल बनानेका प्रयत्न करो ।
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२ - इस बातका निर्णय करो कि जीवनमें छोड़ने योग्य क्या है ? स्वीकार करने योग्य क्या है और जानने योग्य क्या है ?
३.
- अपनी शक्तिका विचार करो और शक्तिके अनुसार उन्नतिक्रममें आगे बढ़ो |
४ - आत्मविश्वास रक्खो | किसीके सहारे न रहो । तुम्हारा उद्धार केवल तुम्हारे ही विचार, पुरुषार्थ और उद्योके आधीन है ।
५ – मान अथवा इस लोक या परलोककी आशा रक्खे विना जितना श्रेष्ठ काम कर सकते हो करो | हम क्या कर सकते हैं ? ऐसे निकम्मे विचार न करो । प्रमादमें जीवन न बिताओ !
६ - यदि गृहस्थ धर्म अथवा साधु धर्मके मार्ग में द्रव्य और भावसे शक्तिके अनुसार प्रयाण करोगे तो मुक्तिपुरीमें पहुँचे विना न रहोगे " ।
प्रवर्तकजी महाराज श्रीकान्तिविजयजी और हमारे चरिनायक दोनोंसे एक ही साथ बंबई में चौमासा करनेकी विनती करनेके लिए सेठ देवकरुण मूलजी, सेठ मोतीलाल मूलजी आदि कई मुखिया श्रावक बड़ोदे आये । प्रवर्तकजी महाराजसे आपने भी साग्रह विनती की कि, " आप बंबईकी
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