SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन । “१ - तत्वज्ञानका अभ्यास करो और विचारोंको निर्मल बनानेका प्रयत्न करो । २९४ २ - इस बातका निर्णय करो कि जीवनमें छोड़ने योग्य क्या है ? स्वीकार करने योग्य क्या है और जानने योग्य क्या है ? ३. - अपनी शक्तिका विचार करो और शक्तिके अनुसार उन्नतिक्रममें आगे बढ़ो | ४ - आत्मविश्वास रक्खो | किसीके सहारे न रहो । तुम्हारा उद्धार केवल तुम्हारे ही विचार, पुरुषार्थ और उद्योके आधीन है । ५ – मान अथवा इस लोक या परलोककी आशा रक्खे विना जितना श्रेष्ठ काम कर सकते हो करो | हम क्या कर सकते हैं ? ऐसे निकम्मे विचार न करो । प्रमादमें जीवन न बिताओ ! ६ - यदि गृहस्थ धर्म अथवा साधु धर्मके मार्ग में द्रव्य और भावसे शक्तिके अनुसार प्रयाण करोगे तो मुक्तिपुरीमें पहुँचे विना न रहोगे " । प्रवर्तकजी महाराज श्रीकान्तिविजयजी और हमारे चरिनायक दोनोंसे एक ही साथ बंबई में चौमासा करनेकी विनती करनेके लिए सेठ देवकरुण मूलजी, सेठ मोतीलाल मूलजी आदि कई मुखिया श्रावक बड़ोदे आये । प्रवर्तकजी महाराजसे आपने भी साग्रह विनती की कि, " आप बंबईकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy