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आदर्श जीवन।
बातको लक्षमें रखना कि, कहीं बकरी निकालते ऊँट न घुस जाय।"
खंभातसे विहार कर आप बड़ोदे पधारे। प्रवर्तकजी महाराज श्रीकान्तिविजयजी भी वहीं विराजते थे । वहाँ महावीर जयन्तीपर आपने बहुत ही बढ़िया भाषण दिया था। उसमें आपने बताया था कि, जयन्ती हमारे यहाँ प्राचीन कालसे मनाई जाती है। पंच कल्याणकका यह रूपान्तर है । यात्रा पंचाशकमें पूज्यपाद हरिभद्रमूरि महाराजने 'जय कल्याणक' उत्सव मनाना बताया है। यह 'जय कल्याणक' ही जयन्तीके नामसे प्रसिद्ध हुआ है । फिर आपने भगवानके चरित्रसे हम क्या सीख सकते हैं सो बताया । वीर शब्दका बहुत ही सुंदर विवेचन किया । अन्तमें आपने कहा ,-" वीरताके कार्य कर हमें वीरपुत्र नाम सार्थक करना चाहिए । यदि हम वीरताके कार्य न करें तो उनके चरित्रसे हमें कोई लाभ नहीं है । यदि हम वीरताका गुण प्रकट करेंगे, वीरताका गुण प्रकट करनेके लिए वीरकी उपासना करेंगे, तो सेव्य सेवक भाव मिटकर हम अवश्यमेव वीरके समान कर्मोंको नाश करनेके लिए वीर हो सकेंगे।" - उसी समय आपने ' भगवान महावीरकी आज्ञाएँ । इस शीर्षकके नीचे कुछ उपदेश प्रकाशित करवाये थे। वे जीवनको उत्कृष्ट बनानेके लिए परमौषध हैं । हरेकको चाहिए कि, वह आइनेमें मढ़ाकर इन उपदेशोंको रक्खे और अपने जीवनको उत्तम बनावे । हम उन्हें यहाँ उद्धृत करते हैं,-. ..
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