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________________ आदर्श जीवन। विनतीको अवश्यमेव स्वीकार कर लें । आपकी छत्रछायामें अनेक कार्य होंगे । बड़े कार्यमें आप जैसे बड़ोंकी खास आवश्यकता है।" प्रवर्तकजी महाराजने बंबईकी विनतीको स्वीकार कर लिया। दोनों महात्मा बड़ोदेसे विहार कर ग्रामानुग्राम विचरते हुए क्रमशः झघडियाजी तीर्थकी यात्रा कर मूरत पधारे । सूरतके सामयेके आडंबरका तो कहना ही क्या? ___ कुछ रोज मूरत ठहरे बाद विहार करके नवसारी, बिलामोरा, पारडी, वलसाड आदि नगरोंमें व्याख्यानोंका लाभ देते हुए जेठ वदि ११ सं० १९७४ के दिन मलाड पधारे। वहाँ दो दिन तक स्वामीवात्सल्य और पूजाएँ हुए । उनमें करीब पन्द्रह सौ श्रावक श्राविकाएँ सम्मिलित हुए थे। वहाँसे ज्येष्ठ सुदी २ के दिन सान्ताक्रूज पधारे । वहाँ भी दो साधर्मी वात्सल्य और दो पूजाएँ हुए थे। महात्माओंके पधारनेकी खुशीमें महावीर जैनविद्यालयको भी एक हजारकी भेट मिली थी। वहाँसे विहार कर जेठसुदी ४ के दिन सवेरे ही दादर पधारे । वहाँ भी उस दिन पूजा और साधर्मीवात्सल्य हुए । संध्याको विहार कर भायखाला पधारे । रातभर वहीं रहे । दूसरे दिन सवेरे ही जुलूसके साथ सपरिवार दोनों महात्माओंका नगरप्रवेश हुआ। हजारों लोग जुलूसमें थे। जुलूसमें करीब ३५ तो बेंड बाजे थे। जिस समय जुलूस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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