________________
आदर्श जीवन।
। आबूसे विहार करके आप मढार पधारे । आपके लघु गुरु भ्राता मुनि मोतीविजयजी भी गुजरातकी तरफसे विहार करके यहीं आपकी सेवामें हाजिर हो गये।
मढारसे विहार करके सं० १९६६ की ज्येष्ठ शुक्ला २ के दिन आप पालनपुर पहुँचे । उमंगोंसे भरे श्रावकोंने आपका कल्पनातीत स्वागत किया । पालनपुरमें साधुओंका सामैया ( जुलूस) यही सबसे पहला था, इस कारणसे भी लोगोंमें उत्साह अत्यधिक था।
नगरप्रवेश बड़ी धूमधामसे कराया। जुलूसमें हजारों नर नारी आये थे। करीब आधे माइलमें जुलूस था। स्त्रियाँ वधाईके गीत गाती थीं और पुरुष जैनधर्मकी जय, आत्मारामजी महाराजकी जय और मुनि वल्लभविजयजी महाराजकी जयके घोषसे आकाश मंडलको गुंजाते थे । __ बड़ोदेके कोठारी जमनादास, खीमचंद भाई आदि लगभग पचास श्रावक आपको बड़ोदेमें चौमासा करनेकी विनती करनेके लिए आबूजी पहुँचे थे; मगर वे आबूजी पहुँचे उसके पहले ही आप दूसरे ( अनादराके) रस्ते होकर नीचे उतर गये थे, इसलिए वे सभी आबूजीकी यात्रा करके प्रवेशमहोत्सवके समय पालनपुर आ पहुँचे थे। " होनी, भवितव्यता, पहलेह से कुछ न कुछ चिन्ह प्रकट कर देती है। पालनपुरके संघका ऐसा अपूर्व उत्साह और सामैया देखकर उनको संदेह हुआ कि संभवतः पालनपुरवाले महाराजका विहार कभी न होने देंगे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org