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आदर्श जीवन ।
उस समय गोदडशाह नामक एक भाग्यवान श्रावकने, आग्रह और भक्ति विकपित कंठसे कहा:
" महाराज साहब ! आप कृपा किजिए और श्रीसंघकी विनती स्वीकार कर लीजिए । मेरा अन्तरात्मा कहता है कि, आपके यहाँ विराजनेसे अनेक उपकार होंगे। यदि आप चौमासा करना इसी वक्त स्वीकार कर लें तो मैं अपना मकानजो इसी धर्मशालाके मैदानमें सामने दिखाई दे रहा है-देनेको तैयार हूँ।"
वहाँ बैठे हुए सभी श्रावकोंके शरीरमें मानों बिजली दौड़ गई । उन्होंने उच्चस्वरसे कहा:-" गुरु महाराज ! आप इस प्रतिज्ञाको साधारण न समझिए । इस प्रतिज्ञाकी पूर्तिसे संघकी इज्जत बढ़ेगी और धर्मशाला वास्तविक धर्मशाला बन जायगी। इस मकानके बिना यह धर्मशाला एक कौड़ीके कामकी भी नहीं है । इस मकान के लिए मुकदमें हुए, संघ दस हजार देनेको तैयार हुआ और अन्तमें संघ बाहर कर देनेकी धमकी भी गोदड़शाहको दी गई। मगर इन्होंने एक भी बात न मानी । आज ये भाई गुरु महाराजके और आपके पुण्य प्रतापसे, विना ही किसीकी प्रेरणाके उसी मकानको देनेके लिए तैयार हैं। आप ज्ञानी हैं लाभालाभको विचार लें। इस मकानका धर्मशालाके लिए मिलना मानों एक बहुत बड़े कामका सिद्ध होना है।"
गोदड़शाहकी उदारता और श्रावकोंका आग्रह देख, साथके
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