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आदर्श जीवन ।
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प्रयत्न किया; उन्होंने आचार्यश्रीको समझाया कि, मुनि वल्लभविजयजी और प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयजी उनलोगोंके ( शिवजीलालनके ) पक्षमें हैं। ___ आचार्यश्रीने हमारे चरित्रनायकसे और प्रवर्तकजी महाराजसे पूछा तब उन दोनों महात्माओंने कहा, यह बात बिल्कुल झूठ है । जहाँ आप हैं वहीं हम भी हैं। ___ यह मामला यहीं पर समाप्त हो गया । सभापतिकी हैसियतसे दिये हुए व्याख्यानमें आचार्यश्रीने आपकी बड़ी प्रशंसा की । द्वेषी लोगोंके हृदयोंमें ईष्याग्नि द्विगुण वेगसे प्रज्वलित हो उठी। वे तो वल्लभविजयजीको आचार्यश्रीकी निगाहसे गिराना चाहते थे, मगर बात उल्टी हो गई। आचार्यश्रीकी निगाहमें आपकी इज्जत, कमसे कम उस समय, दुगनी हो गई। उन लोगोंने सम्मेलनको विध्वंस और आपको नीचा दिखानेका दृढ निश्चय कर लिया। सच है
औरनको उत्कर्ष जग; देखि सकत नहीं नीच । । । आप बड़ोदेसे विहार करके डभोई पधारे और आचार्य महाराज श्री १०८ श्रीविजयकमलमूरिजीकी आज्ञानुसार सं० १९६९ छब्बीसवाँ चौमासा आपने डभोईमें किया। इस चौमासेमें आपके साथ सोलह साधु थे । आपके उपदेशसे वहाँ कई शुभ काम हुए। दो तीन अठाई महोत्सव भी हुए । कई साधुओंने बृहद् योगोद्वहन भी किया। चौमासा समाप्त होने
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