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आदर्श जीवन ।
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श्रम करते हैं इसके लिए बालक आपके अनन्य ऋणि हैं
और उसमें मेरा भी हिस्सा है।" __ सेठ देवकरण मूलजीको उनकी उदारताके उपलक्षमें बंबईमें एक मानपत्र दिया गया था। उसके बाद ता०२-८-१६ को उन्होंने हमारे चरित्रनायकके पास एक पत्र भेजा था । उसको हम यहाँ देते हैं,
"xxxxx बंबईमें मेरे प्रेमी ज्ञातिबंधुओंने मुझे मानपत्र दिया था। उसके संबंधमें आपका एक उपदेशप्रद और स्तुतिपात्र तार हमारी ज्ञातिके प्रमुख पाटलिया पानाचंद झीणाभाईके पास आया था। वह सभामें पढ़कर सुनाया गया था । उसके लिए, मैं आपका अन्तःकरणपूर्वक, जो कभी भूला न जाय ऐसा, उपकार मानता हूँ और आप पवित्र गुरु महाराजको अभिवंदन करता हूँ।
विशेष यह है कि, मैंने अपने गरीब जातिभाइयोंके हितके लिए जो कुछ थोड़ीसी सखावत की है, वह आपके पवित्र उपदेशके कारण ही की है । इस लिए वास्तविक मानके योग्य तो आप हैं, मैं नहीं। ___ जूनागढ़ बोर्डिंगके लिए श्रीमहावीर जैनविद्यालयकी तरह, देशकी स्थितिको देखकर आप उत्तम कार्यक्रमकी योजना कर देंगे ऐसी आशा है।"
पाठक जानते ही हैं कि, हमारे चरित्रनायकके जीवनका
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