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आदर्श जीवन ।
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(सं. १९७१ से ७५ तक.) चौमासा समाप्त होनेपर आपने विहारकी तैयारी की। समाजमें खलबली मच गई। धनी गरीब सभी तरहके श्रावक आकर आपसे दूसरा चौमासा भी बंबईहीमें करनेकी विनती करने लगे, और कहने लगे कि,-" आपने जिस नवीन भावनाका अर्थात् कॉलेजोंमें पढ़नेवाले विद्यार्थियोंके लिए, वर्तमानशिक्षाके साथ ही धर्मकी शिक्षा भी दी जा सके ऐसा प्रबंध करनेका जो उपदेश दिया है उसको कार्यरूपमें परिणत करानेके लिए आपका यहाँ होना आवश्यक है।" यह जिकर व्याख्यानके समयका है।
बंबईके श्रीसंघकी प्रेरणासे आपने श्रीपंचपरमेष्ठीकी पूजा तैयार की थी। उसी रोज लालबागमें बड़ी धूमधामके साथ पूजा पढ़ाई जानेवाली थी। इस लिए दुपहरके वक्त पूजामें आनेके लिए सभी भाई बहनोंसे कहा गया
सेठ हेमचंद भाईने पूजाका सारा खर्च दिया था । पंचपरमेष्ठीके १०८ गुणके अनुसार सामग्रीकी १०८ थालियाँ तैयार की गई थीं। छत्तीस स्नात्री बने थे जो थाली लिए साक्षात् इन्द्रके समान सुशोभित होते थे । स्नात्रियों में सेठ हेमचंद भाई, सेठ देवकरण मूलजी, सेठ मोतीलाल मूलजी, सेठ नगीनभाई मंछूभाई, सेठ लल्लूभाई गुलाबचंद, सेठ गोविंदजी खुशाल, जौहरी मणिलाल सूरजमल, मोतीचंदजी कापडिया सॉलिसिटर आदि बंबईके प्रतिष्ठित धर्मात्मा गृहस्थ थे । इससे भी पूजाका आनंद अत्यधिक बढ़ गया था।
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