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आदर्श जीवन।
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'दिन खंभात पधारे । समारोहके साथ आपका स्वागत हुआ। वहाँ आप नई धर्मशाला (उपाश्रय ) में ठहरे । वहाँ आपकी गृहस्थावस्थाकी भानजी श्रीमती चंचलबहिनको माघ वदि ६ सं० १९७२ के दिन बड़े समारोहके साथ दीक्षा दी। नाम चंद्रश्रीजी रक्खा । साध्वी देवश्रीजीकी शिष्या हुई।
खंभातसे विहार कर आप धोलेरा पधारे । वहाँसे मुनि श्रीविलासविजयजी और साध्वीजी श्रीचंद्रश्रीजीको पं० महाराज श्रीसोहनविजयजीने बड़ी दीक्षा दी।
धोलेरासे विहार कर ग्रामानुग्राम विचरते और लोगोंको धर्मामृत पिलाते हुए आप दादाकी चरण वंदना करने पालीताने पधारे।
पालीतानसे विहार कर आप विचरते हुए जूनागढ़ पधारे वहाँ बड़े समारोहके साथ आपका सामैया हुआ । उस समय आपके साथ पन्द्रह साधु थे । उनके नाम ये हैं (१) पं० श्रीसोहनवि० (२) श्रीललितवि० (३) श्रीविमलवि० (४) श्रीविबुधवि० (५) श्रीतिलकावि० (६) श्रीविद्यावि० (७) श्रीविचारवि० (८) श्रीविचक्षणवि० (९) श्रीमित्रवि० (१०) श्रीसमुद्रवि० (११) श्रीविलासवि० और (१२) श्रीप्रभावि० ये सब आपहीके परिवारके हैं। इनके उपरांत (१३) श्रीविनयवि० (१४) श्रीकेसरवि० ये दोनों १०८ श्रीउपाध्यायजी महाराज श्रीवीरविजयजीके शिष्य और (१५) १०८ श्रीउद्योतविजयजी महाराजके शिष्य श्री कस्तुर विजयजी थे।
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