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आदर्श जीवन।
कके पास जो पत्र भेजा था उसका कुछ अंश हम यहाँ उद्धत करते हैं,
" आपका पत्र कॉन्फरंसमें ढड्राजीने सारा पढ़ा था । उसे सुनकर सबको प्रसन्नता हुई थी। + + + + + ___ " + + + + आपकी कृपासे कॉन्फरंसका कार्य पूर्ण हुआ । नींव मजबूत बनी । आगे पालनपुर जानेकी इच्छा है । पालनपुर आपका क्षेत्र है। आप पर वहाँके लोगोंकी बड़ी भक्ति है। हम सभी चाहते हैं कि पालनपुरमें, कॉन्फरंसके समय, आप उपस्थित होंगे। + + + ___" + + + + आपने विद्यालयके कार्यसे हमें एक सबक सिखलाया है कि, दृढ मनसे काम किया जाय तो सब कुछ मिल जाता है । कॉन्फरंसके समयमें दूसरी बार उसका अनुभव हुआ है । यदि आपके समान सर्वत्र विशाल विचार हों तो उदय शीघ्र ही दिखाई दे । अनेक कठिनाइयोंके बीचमें कार्य करना है । काम धीरे धीरे आगे बढ़ेगा। + + + + " __आपने जब जूनागढ़से विहार किया तब वहाँका जैनसंघ ही नहीं अन्यान्य धर्मावलंबी भी उदास थे । सब चाहते थे कि आप वहीं चौमासा करें; किन्तु आप जामनगरकी तरफ जानेका इरादा रखते थे, इस लिए आपने पंन्यासजी महाराज श्रीललितविजयजीको तो पहले ही रवाना कर दिया था फिर आपने भी विहार किया । और वनथली पहुंचे। 'जेठसुदी ६ सं० १९७३ के दिन वनथलीमें शीतलनाथ
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