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आदर्श जीवन।
आनंद पूर्वक बाल ब्रह्मचारी श्रीनेमिनाथ भगवान की यात्रा की । बारह दिन तक आप वहाँ विराजे । तीन सार्वजनिक व्याख्यान भी हुए। एक महावीरजयंती पर, दूसरा सरकारी हाइ स्कूलमें और तीसरा बीसा श्रीमाली जैन बोर्डिंगके पारितोषिक-वितरणकी सभामें ।
बंबईके जैन मूर्तिपूजक समाजमें सेठ देवकरण मूलजी विशेष प्रसिद्ध हैं। हमारे चरित्रनायकके वे अनन्य भक्त हैं। उनको हमारे चरित्रनायकने ता. ३-५-१६ के दिन एक पत्र लिखा था और उसमें आपने शिक्षाप्रचारमें खास तरहसे धन खर्चनेका उपदेश दिया था। उसके उत्तरमें ता. ५-५-१६ को उन्होंने लिखा था:-"+++ + मुझे आपने शिक्षाप्रचारके लिए जो कुछ लिखा है वह सर्वथा योग्य है । वर्तमान समय अनेक दलीलें देकर शिक्षाकी आवश्यकताको प्रमाणित कर रहा है । मैं अब जो कुछ शिक्षाप्रचारका कार्य करना चाहता हूँ, वह आपकी सलाहसे ही करूँगा । मेरी गरीब जन्मभूमि सौराष्ट्रके जैनियोंके साथ मेरी पूर्ण सहानुभूति है; क्योंकि शिक्षाके अभावसे उनकी स्थिति बहुत ही दयाजनक है। आपकी आज्ञाके अनुसार जुदा जुदा स्थानोंमें थोड़ी थोड़ी रकम न खर्च, जहाँ शिक्षाका सर्वथा अभाव है वहीं इकट्ठी खचूंगा। आपके पास आकर आपकी सलाहके अनुसार यथायोग्य करनेकी इच्छा है।
" + + + + वनथलीमें शीतलनाथ प्रभुके पाट महोत्स
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