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आदर्श जीवन ।
" तुम्हारी योजना देखी । इसमें कोई संदेह नहीं कि, वह बहुत ही अच्छी और लाभदायक है । मगर पहले ऐसे शिक्षक उत्पन्न करनेकी आवश्यकता है कि, जो छोटी उम्रके विद्यार्थियोंके हृदय तुम्हारी योजनाके अनुसार बना सकें। शिक्षक सदाचारी और धर्मप्रेमी होंगे तो वे विद्यार्थियोंको भली प्रकार तैयार कर सकेंगे। मगर जहाँ शिक्षक लोभी हों, एक जगह बीस मिलते हों और दूसरी जगह पचीस मिल सकते हों तो पहली जगहको तत्काल ही छोड़ कर चले जाने वाले हों; स्वच्छंदता पूर्वक व्यवहार करनेवाले हों, जहाँ शिक्षक होकर आये हों वहाँ समुदायमें मेलकी जगह विरोध कराते हों; ऐसे शिक्षकोंका विद्यार्थियों और उनके मातापिताके दिलों पर कैसा प्रभाव पड़ता है सो बात विचारणीय है । इस लिए यदि तुम वास्तविक सुधार चाहते हो तो पहले सच्चे शिक्षक तैयार करो x x x + + + शिक्षकोंके बिना तुम चाहे कैसे ही नियम तैयार करो वे सर्वथा निरुपयोगी हैं। क्योंकि विद्यार्थियोंको किस मार्ग पर चलाना यह बात सदा शिक्षकोंहीके हाथमें रहती है। x x + x + तुम्हारा आशय और प्रयास बहुत ही अच्छा और अनुमोदन करने लायक है।"
उपर्युक्त विचारोंसे पाठकोंको पता चलेगा कि, शिक्षाके विषयमें आपके विचार कैसे हैं ? जैन समाजको शिक्षित बना नेकी आपके हृदयमें कितनी लगन है ।
मूरतसे विहार कर विचरते हुए आप पोससुदी १२ के
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