________________
आदर्श जीवन।
२७७
प्रभुकी प्रतिष्ठा महोत्सवकी सालगिरह थी। हमारे चरित्रनायकके सभापतित्त्वमें उत्सव हुआ। शिक्षाके विषयमें आपका उपदेश हुआ। उसमें सेठ देवकरण मूलजीने पचास हजार रुपये जूनागढ़के 'श्रीवीशा श्रीमाली जैनबोर्डिंगहाउस' को दिये। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, यदि सौराष्ट्रके जैन इंस बोर्डिंगके लिए पचीस हजार रुपये जमा करेंगे तो वे पचास हजार रुपये और भी देंगे।
वनथलीसे जामनगर जानेके लिये विहार करके आप छत्रासा गाममें पधारे । वहाँ आपके साथके एक मुनि महाराजकी तबीअत खराब हो गई। इसलिए उनका इलाज कराने फिरसे जूनागढ़ जानापड़ा। चौमासेके दिन निकट आ गये थे, इस लिए आपने जामनगर जानेका विचार छोड़ दिया और वैरावलके श्रीसंघकी विनती स्वीकार कर ली। कुछ साधुओंका, आपने, वैरावलकी तरफ़, विहार भी करवा दिया।
क्षेत्रस्पर्शना प्रबल होती है । जहाँकी होती है वहीं मनुष्यको -चाहे वह महान हो या साधारण-जाना और रहना पड़ता है । स्पर्शना जूनागढ़की थी, फिर आप वहाँसे अन्यत्र जा कैसे सकते थे ? रुग्ण मुनिजीकी तबीअत और भी ज्यादा खराब हो गई। जूनागढ़का संघ तो पहलेहीसे यह चाहता था कि, आपका चौमासा वहीं हो, अब तो विशेष आग्रहके साथ उसने विनती की कि, आप यहीं चौमासा करना स्वीकार करें। मुनि महाराज जबतक नीरोग न होंगे तबतक हम आपको यहाँसे विहार न
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org