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आदर्श जीवन।
___ "सात क्षेत्रोमें चार क्षेत्र (साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका ) साधक हैं और तीन क्षेत्र (जिन प्रतिमा, जिनमंदिर और ज्ञान ) साध्य हैं। जैन समाजमें साध्य क्षेत्रोंकी प्रभावना उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। परन्तु साधक क्षेत्र प्रति दिन क्षीण होते जा रहे हैं। उनमें भी श्रावक और श्राविका दो क्षेत्र जो दूसरे पाँच क्षेत्रोंके पोषक हैं उनकी क्षीणता अत्यधिक हो रही है । सभी मानते हैं और यह सच भी है कि, जैन बहुत ज्यादा धन खर्चते हैं। परन्तु हम दुखी होती हुई अनाथ स्त्रियोंका विचार करेंगे तो मालूम होगा कि वे बहुत ज्यादा दुखी हैं। उनके दुःख मिटानेके लिए जैनोंने कभी विचार नहीं किया। आजकल हरेक जातिने आश्रम खोले हैं और उनमें सैकड़ों अनाथ स्त्रियाँ-जो निकम्मी दुःखमें अपना जीवन बिताती थीं-अपना कर्तव्य पालनेके लिए तैयार हो रही हैं। मगर जैन समाजमें जो अनाथ अबलाएँ हैं उनके दिन किसी साधनके न होनेसे दुःखमें बीत रहे हैं । खेदकी बात है कि संघने अबतक इस तरफ ध्यान नहीं दिया । उजमणे, स्नात्र महोत्सव आदि ज्ञान, दर्शन
और चारित्रकी प्राप्तिके साधन हैं। इनसे जसे अपना साध्य सिद्ध हो सकता है वैसे ही ज्ञान, दर्शन और चारित्रकी आराधनके लिए अनाथ अबलाओंके साधनके लिए भी कुछ प्रबंध होना आवश्यक है।"
बंबईके श्रावकोंकी विनतीसे पं० जी महाराज श्रीललित
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