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आदर्श जीवन ।
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नदी है । उसमें हमेशा पानी रहता है । म्यानेवाले जब नदीके बीचमें पहुंचे तब उनके पेटमें ऐसा जोरका दर्द हुआ कि, उनके लिए खड़ा रहना कठिन हो गया । उनकी आँखोंके आगे अंधेरा छागया। इससे वे एक कदम भी आगे न बढ़ सके । श्रीपूज्यजीको जब यह बात कही गई तब उन्होंने कहा,-"पछि लौट जाओ।"पीछे फिरनेको उद्यत होते ही उनका दर्द जाता रहा और उन्हें आँखोंसे भी दिखाई देने लगा । तब श्रीपूज्यजीने कहा:--" अधिष्ठाताकी मरजी करचलिया जानेकी नहीं है।" सं०१९२६ में पुनः प्रभुको गद्दी पर स्थापित किया।
बीचमें फिर सलाह हुई कि, प्रभुको करचलियेमें ले आवें । संघने वाणियावाड़में जाकर चिहियाँ डाल कर एक कुमारी कन्यासे निकलवाई मगर संतोषजनक उत्तर न मिला । इत्यादि बातोंके कारण लोगोंके मनमें संदेह रहता था । + x x x उनके पुण्योदयसे मुनि श्री १०५ वल्लभविजयजी महाराजका उस तरफ पधारना हुआ। साठ साठ बरसकी आयुवाले कहते हैं कि, आजतक इधर किन्हीं मुनि महाराजका विहार नहीं हुआ था। पहली ही बार इधर पधारनेकी इन महाराजने दया की है। सत्य है यदि इधर मुनि महाराजोंका विहार होता तो यहाँके लोग लहसन, प्याज वगैरा अभक्ष खाने लग गये हैं सो न खाते । महाराजने उन्हें समझा कर उनसे अभक्ष्यका त्याग करवाया है । अस्सी फी सदीने अभक्ष्यका
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