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आदर्श जीवन।
दिया था। उसे सुनकर महाराजा साहब बहुत प्रसन्न हुए थे और उन्होंने सार्वजनिक व्याख्यान देनेके लिए आग्रह किया था। तदनुसार हमारे चरित्रनायकके दो व्याख्यान हुए थे। एकका विषय था 'धर्मतत्त्व' और दूसरेका था ' सार्वजनिक धर्म' ये व्याख्यान ता० ९ और १६ मार्च सन् १९१३ ईस्वी रविवारको शामके समय न्यायमंदिरमें हुए थे । इस न्यायमंदिरमें सार्वजनिक व्याख्यान देनेका सौभाग्य उन्हींको प्राप्त होता है जो बहुत बड़े वक्ता समझे जाते हैं। व्याख्यान इस ग्रंथके उत्तरार्द्धमें प्रकाशित हो चुके हैं । सभापतिके पद पर शान्तमूर्ति मुनि श्रीहंसविजयजी महाराज बिराजे थे।
इन व्याख्यानोंमें दोनों महात्माओंके साथके साधुओंके अलावा । पंन्यासजी श्रीसिद्धविजयजी महाराजके तथा पं० श्रीआनंदसागरजी महाराजके साधु भी थे। साधुओंकी संख्या सब मिलाकर ३५ थी। बड़ोदेके जो बड़े बड़े आदमी शामिल हुए थे उनमेंसे कुछ मुख्य मुख्यके नाम यहाँ दिये जाते हैं।
श्री हिं० बा. आनंदराव गायकवाड, दी० ब० समर्थ साहब, श्री रा. रा. सम्पतराव गायकवाड, श्री अवचितराव गायकवाड, राय बहादुर हरगोविन्ददास द्वारकादास काँटावाला, श्री रा. रा. नृसिंहराव घोरपडे, श्री वाघोजीराव राजशिर्के, रा. रा. चिमनलाल सामलदास, राय बहादुर लक्ष्मीलाल दौलतराम, रा. रा. रामचंद्र दिनकर फडके, केप्टन बल्देवप्रसाद, मे० नबाब नसरुद्दीन साहब, मि० सारंगपाणि जज, मि० अब्बास
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