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आदर्श जीवन।
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राजा व्याख्यानोंको सुनकर बहुत खुश हुए । एक दिन उन्होंने हाथ जोड़कर भक्तिपूर्ण स्वरमें कहाः-"गुरु दयाल ! मेरी उम्रमें यह पहला ही अवसर है कि, मैंने इतनी देरतक बैठकर व्याख्यान सुना है । मैंने अनेक व्याख्यान सुने हैं मगर आजतक इतने मधुर इतने गंभीर, इतने हृदयग्राही और साथ ही इतने मनको लगाये रखनेवाले व्याख्यान नहीं सुने थे। आज मैं कृतकृत्य हो गया।"
डभोईका संघ अपने साथ एक प्रतिमाजी लाया था। अतः आठ दिनतक दुपहरको हमेशा वहाँ पूजा पढ़ाई जाती थी। आठ दिनतक रहकर वहाँसे आपने विहार किया।
गुजराती समाचार पत्रोंमें आपके व्याख्यानोंकी धूम मच गई। बड़ोदा नरेशके कानोंतक ये समाचार पहुंचे। उन्होंने डॉक्टर बालाभाई मगनलालकी मारफत मुनि श्रीहंसविजयजी महाराजको तथा आपको आमंत्रण दिया। दोनों प्रसन्नतापूर्वक बड़ोदा नरेशका आमंत्रण स्वीकार कर बड़ोदे पधारे। बड़े समारोहके साथ दोनों महात्माओंका बड़ोदेमें स्वागत हुआ। आत्मानंद प्रकाशने लिखा है,-" इस समय श्रीमान् महाराज हंसविजयजी साहबका तथा विद्वान् मुनिराज श्रीवल्लभविजयजीका आगमन खास गायकवाड सरकारके निमंत्रणसे हुआ था, इस लिए, श्रीमान् महाराजाकी तबीअत बराबर न थी तो भी श्रीमंत सरकार राजमहलमें इन मुनिराजोंसे मिले थे। उस समय मुनि महाराज श्रीहंसविजयजी साहबने प्रसंगानुसार बोध
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