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. आदर्श जीवन।
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आशा करता हूँ कि, गुरुदेवका चरित्रश्रवण तुम्हें भवबंधनसे मुक्त होनेमें मददगार होगा।" ___ इसके बाद आपने गुरुदेवका जीवन संक्षेपमें सुनाकर उपसंहार करते हुए कहा था:-"महाराजके चरित्रसे साधु और श्रावक बहुत कुछ सीख सकते हैं । महाराजश्रीके विहारका प्रमाण, उनकी उपदेश करनेकी रीति, स्वतंत्र और सत्य भापण, जगतके मान और कीर्तिकी आश्चर्यकारक उपेक्षा, अन्य धर्मावलंबियोंको, लड़ाई झगड़ा किये बगैर अपनी बात समझानेकी और उनके हृदयोंपर प्रभाव डालनेकी रीति, और जैन कौममें शान्ति रखनेकी अपूर्व शक्ति आदि गुण साधुओंके लिए अनुकरणीय हैं। यदि साधु अभी समझानेकी जो रीति है उससे भी उत्तम रीतिके साथ दूसरे धर्मवालोंको समझा।
और अपने धर्ममें शामिल करें तो जैनियोंकी संख्यामें ज्यादती हो सकती है । श्रावकोंको भी ध्यानमें रखना चाहिए कि गुरुदेवने बचपनहीमें, जब दुनियाको, नापायदारअसार समझा तब तत्काल ही छोड़ दिया। इस लिए श्रावकोंको भी यह नियम कर लेना चाहिए कि वे सत्यको ही श्रेष्ठ और अपना समझें, अपनेको ही सत्य और श्रेष्ठ न मान बैठें । सभी हमेशा धर्ममें प्रवृत्ति रक्खें । धनवान सदा गरीबोंके दुःख दूर करनेका खयाल रक्खें । प्रत्येकका कर्तव्य है कि, वह धर्मकाममें आगे आवे और यथासाध्य कलहसे दूर रहे।"
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