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आदर्श जीवन।
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श्रीविद्यावि० (९) श्रीविचारवि० (१०) श्रीविचक्षणवि० (११) श्रीमित्रवि० (१२) श्रीसमुद्रवि० (१३ ) श्रीसागरवि० ये सब आपके ही परिवारके थे। इनके उपरांत शांतमूति १०८ श्रीहंसविजयजी महाराजके शिष्य दौलत विजयजी अपने शिष्य श्रीधर्म वि० और प्रशिष्य श्रीकपूरवि० सहित आपके साथहीमें थे । इस तरह कुल १६ साधु थे। ___ लालबागके उपाश्रयमें पहुँचकर आपने जो उपदेश दिया था उसे सुनकर सभी एक स्वरसे बोल उठे कि, जैसी प्रशंसा सुनते थे उससे भी बढ़कर प्रशंसा करने योग्य आपकी व्याख्यानशली है।
ज्येष्ठसुदी ८ के दिन स्वर्गीय गुरुदेव श्रीआत्मारामजी महाराजकी जयन्तीपर आपने जो व्याख्यान दिया था उसमें गुरुदेवका चरित्र वर्णन करनेके पहले कहा था-"व्याख्यानका या महात्माओंके चरित्र सुनानेका मूल्य तभी होता है जब महात्माओंके पचिन्हों पर चलनेका प्रयत्न किया जाता है । एक कानसे सुनना और दूसरे कानसे निकाल देना इससे कोई व्यावहारिक लाभ नहीं । महात्माओंके चरित्र हमें अपने साध्यको सिद्ध करनेमें बहुत बड़ी सहायता देते हैं । जंगलमें रस्ता भूले हुए आदमीको जैसे आदमीके पचिन्ह सरल मार्ग पर पहुँचा देते हैं, वैसे ही संसार रूपी जंगलमें भटकते हुए लोगोंको, महात्माओंके चरित्रोंसे सत्य और सरल मार्ग मिल जाता है और वे सीधा मोक्षका रस्ता पकड़ लेते हैं। मैं
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