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आदर्श जीवन।
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वहाँके लोगोंका बहुत आग्रह होने पर भी आप विशेष समयतक वहाँ न रह सके । क्योंकि आपने सेठ मोतीलाल मूलजीको उनके संघमें शामिल होनेका वचन दे दिया था। और संघके रवाना होनेका मुहूर्त निकट था ।
पाटनसे विहार करके आप राधनपुर पहुँचे । राधनपुरमें उस समय जो उत्साह और आनंद था वह वर्णनातीत है । राधनपुरको इस बातका अभिमान था कि, जिस महान आत्माको उसने हजारों खर्च करके दीक्षित कराया था वह आज जैनसंघके आकाशमें सूर्यकी तरह प्रकाशित हो रहा है। जिस महान आत्मासे उसने आशा की थी कि, वह जैन धर्मकी जयपताका फर्रायगा, उस आत्माने उसकी वह अभिलाषा पूरी की है । जिस महान आत्माको उसने यौवनके उषः कालमें; वासनाओंसे परिपूर्ण प्रभातमें, संयमके समान अमूल्य रत्न देकर उसकी रक्षा करनेके लिए, सहस्रावधि प्रलोभन रूपी लुटेरोंके बीचमें छोड़ दिया था, वही महान् आत्मा विजयी वीरकी भाँति बाईस बरसके बाद संयमरत्नको सुरक्षित लेकर वापिस आया। ऐसे मौके पर राधनपुरवालोंका उत्साहित एवं आनंदित होना स्वाभाविक था । घर घर बाँदनवार बँधे। सारे संघमें आनंद ही आनंद छा रहा।
सं० १९६६ के मिगसर सुदी द्वितीयाके दिन संघ जुलूसके साथ रवाना हुआ। और श्रीसंखेश्वर पार्श्वनाथ पहुँचा । तीन दिन तक वहीं रहा । पूजा प्रभावनाएँ हुई । यहाँ
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