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आदर्श जीवन
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कोर्ट आदिकी शरण ले तो, फिर पंचायतको उसमें दखल देनेकी कोई आवश्यकता नहीं है। कोर्टकी इच्छा हो वैसा हुक्म करे।
(११) छोकरा छोटा है इस लिए उसकी तरफ स्वभावतः सबका ध्यान जाता है। समय अपना काम किये जाता है। क्या होगा इस बातकी किसीको भी खबर नहीं है, तो भी पानीके पहले पाल बाँधना उचित ही मालूम होता है। यदि छोकरा अपने बापके पास रहे तो सौतेली माँ उसके साथ कैसा वर्ताव करेगी यह बात संदेहास्पद है। माँके पास रहनेपर, योग्य उम्रका होनेपर, किस रंगमें उतर जायगा सो कुछ कहा नहीं जा सकता। इस लिए छोकरा योग्य उम्रका हो तब उसे सुशिक्षा मिले और उसका जीवन न बिगडे इसलिए उसके दादाको-जिसके नामसे यह झगड़ा खड़ा हुआ कहलाता है-चाहिए कि वह कमसे कम एक हजार रुपये, किसी बैंकमें सेठ नेमचंद पीतांबर, मगनलाल पीतांबर
और झणोरवाले खूबचंद पानाचंद इन तीनोंके साथ मिल, अपने नाम सहित जमा करादे कि, जिससे उनके व्याजसे छोकरेको शिक्षा मिलती रहे । यदि व्याजसे काम न चले तो भले मूलमेंसे भी खर्चा किया जाय । अभिप्राय यह कि लड़केको सुशिक्षा देनेके लिए चारों आदमी पूरा ध्यान दें। देवयोगसे लड़का यदि शिक्षा प्राप्त करने योग्य न बने तो उपर्युक्त रकम, सारी जातिमेंसे यानी सारे संभा (?) समुदायमेंसे
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