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आदर्श जीवन ।
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Punar
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कर आपको आनंद हुआ। तीन दिन पूजा प्रभावना स्वामिवात्सल्यादिका ठाठ होता रहा ।
वणछरेसे विहार करके आप पाछियापुर पधारे । वहाँके श्रीसंघने आपके उपदेशसे एक अठाई महोत्सव किया।
पाछियापुरसे विहारकर अन्यान्य ग्रामोंमें विचरण करते,. अज्ञानांधकारमें डूबे हुए श्रावकोंको निकालकर धर्म ज्ञानके प्रकाशमें रखते, और आहारपानी आदिके अनेक तरहके परिसह सहते हुए आप सीनोर पधारे। बीचमें अनेक गाँव ऐसे आये जिनमें श्रावक बसते थे मगर वे नहीं जानते थे कि, वे श्रावक क्यों कहलाते हैं ? उनका धर्म क्या है ? उनके देव कौन हैं ? उनके गुरु कौन हैं और वे कैसे होते हैं ? जब वे अपनेको तथा अपने गुरुको ही नहीं पहचानते थे तब वे यह तो जान ही कैसे सकते थे कि उन्हें आहारपानी कैसे दिया जाता है ? इस लिए आपको एक दो बार आहारपानी बिना भी रहना पड़ा। यह जानकर पाठकोंको दुःख हुए बिना न रहेगा कि, गुजरात जैसे प्रदेशमें-जहाँ सैकड़ों साधु मुनिराज विहार करते हैं-ऐसे गाँव भी हैं जिनके अंदर हमारे मुनि महाराज कभी नहीं जाते। इसका मुख्य कारण यह बताया जाता है कि उन गाँवोंमें साधुओंके लिए योग्य व्यवस्था गहीं हैं। अथात् वे पक्की सड़कोंसे दूर हैं; आहारपानीके लिए साधु मुनिराजोंको तकलीफ होती है। राजपूताना, पंजाब, दाक्षिण,, मध्यप्रान्त, बंगाल और संयुक्त प्रान्त आदिके कस्बों और
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