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आदर्श जीवन ।
नहीं दिया जासकता है-श्रीमन्महावीर स्वामी शासन नायककी स्तवना करते हुए फर्माते हैं ।
" कोटि वदन कोटि जीभसुरे, कोटि सागर पर्यंत । गुण गाउँ तोरे भक्तिसुरे तो तुम ऋणका न अन्त । " इसी प्रकार इन सद्गुरुके ऋणका भी अन्त नहीं हो सकता है। इन परमोपकारी महात्माके स्वर्गारोहणके अनन्तर आज पर्यंत कोई ऐसा समय प्राप्त नहीं हुआ है जैसा कि उनकी हयातीमें कभी कभी कहीं कहीं सम्मेलनका हो सकता था । अब शासन देवता और गुरु महाराजकी कृपासे वह समय निकट आया नजर आता है, इस लिए दिल चाहता है कि, श्रीगुरुमहाराजजीके यावत् साधु हैं, सबका कहीं न कहीं एकत्र होना होवे तो अपूर्व लाभ प्राप्त होवे । जिन महात्माओंके सुदर्शनका लाभ इस मुनिचरणोंके दासको नहीं हुआ है सो होवे और परस्पर आनंद प्राप्त होवे । इसमें शक नहीं। हम तुम आनंदगुरुके सन्तानीय हैं । वहाँ निरानंदको अवकाश ही नहीं है; तथापि आजकलके समयानुसार एकत्र सम्मेलनसे अत्यानंद की प्राप्तिका संभव है।
शासन देवताकी कृपासे और श्रीसद्गुरुमहाराजकी कृपासे आजकलके समयानुसार जितना समुदाय और संप तथा ज्ञान क्रियादि गुण श्रीगुरुमहाराजजीके परिवारका लोगोंके मुखसे सुना जाता है उतना अन्य किसीका भी नहीं सुनाजाता है तो एकत्र सम्मेलनेसे श्रीगुरुमहाराजजीकी अवर्णनीय
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