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आदर्श जीवन।
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दामुनिचरणोंका दास वल्लभविजयकी त्रिकाल वंदना स्वीकारनीजी, कृपादृष्टि विशेष रखनी जी।"
इस पत्रकी नकलें मुनि महाराज श्री जयविजयजी, अमरविजयजी, मोहनविजयजी, हीरविजयजी, सुमतिविजयजी, मोतीविजयजी,माणकविजयजी और अमीविजजीके पास भेजी गई थीं।
विज्ञप्तिके अनुसार करीब पचास साधु बडोदेमें एकत्रित हुए और सम्मेलनमें जो कार्रवाई हुई उसका पूरा वर्णन इस ग्रंथके उत्तरार्द्धमें दे दिया गया है । पाठक उत्तरार्द्धके ५२ वें पृष्ठमें इसे पढ़ लेवें । __ इस सम्मेलनकी बातको सुनकर अनेकोंके दिलोंमें जलन पैदा हुई; खास तरहसे हमारे चरित्र नायककी प्रशंसासे कई लोगोंके दिल ईर्ष्यासे परिपूर्ण हो गये। उस समय शिवजी और लालनको लेकर समाजमें बड़ी हलचल मची हुई थी । कई इनके पक्षमें और कई विपक्षमें । शिवजी और लालनपर यह दोष लगाया गया था कि, इन लोगोंने सिद्धाचलजी पर अपने भक्तोंसे अपनी पूजा कराई थी। सिद्धाचलके समान पुण्यतीर्थ पर इन लोगोंने यदि अपनी पूजा कराई हो तो इनके बरावर दोषपात्र दूसरा नहीं है। इस बातको दोनों दल मानते थे। मगर मतभेद होनेका कारण यह था कि, एक दल कहता था इन्होंने अपनी पूजा कराई है। दूसरा कहता था इस बातका प्रमाण चाहिए । आचार्य श्रीविजयकमल मुरिजी प्रथमपक्षमें थे । लोगोंने इससे फायदा उठाकर सम्मेलन भंग करनेका
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