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आदर्श जीवन।
समझता हूँ । और इसी लिए मैं अपराधीको मुक्त हुआ प्रकट करता हूँ।
(८) अदालतको भी ऐसी सत्ता होती है कि अपराध साबित हो जाने पर भी यदि अदालतकी दयादृष्टि हो जाय तो वह अपराधीको अपराधकी क्षमा दे सकती है ।
(९) ऐसा होने पर भी अपराधी अपनी खुशीसे जाति भोज देनेको तैयार है । यह बात चुने हुए दस आदमियोंके कहनेसे मालूम होती है। इस लिए मैं इतना परिवर्तन करना उचित समझता हूँ कि दो की जगह एक ही जातिभोजसे सभी भाई सन्तुष्ट हों और दूसरे जातिभोजमें जितनी रकम खर्च होनेवाली हो उतनी रकम यदि श्रीसंभवनाथजीके मंदिरके जीर्णोद्धारमें दी जाय तो इह लोक और पर लोक दोनों साधे समझे जायँ । मगर इस कामको राजी खुशीका समझना चाहिए, किसी तरहकी सजा या दंडके रूपमें नहीं।
(१०) बाइके भरणपोषणके लिए यदि वह अपनी भलाई समझ अपने पतिके और पंचायतके अनुसार वर्ताव करे तो उसका बंदोबस्त पंचायतको योग्य रीतिसे करना कराना चाहिए । इस कामको दोशी बृजलाल सेठ, कस्तूरचंद सेठ और जिणोरवाले बृजलाल दीपचंदको, अभी सौंपना योग्य मालूम होता है। क्योंकि तीनों व्यक्तियाँ वृद्ध हैं और जातिके रीतिरिवाजोंसे भली प्रकार परिचित हैं इस लिए कोई अनुचित कार्य नहीं करेंगे। मगर बाई यदि ऐसा न करे और
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