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आदर्श जीवन ।
जका टेक्स बंद करवाया । धनवान लोगों के लिए यह नियम हो गया कि, वे चाहें तो सधर्मीवात्सल्य करें। इस टेक्सके हट जाने पर उस चौमासेमें पालनपुरमें अनेक अठाइयाँ हुई ।
चौमासा समाप्त होनेमें कुछ ही दिन बाकी थे तब दानवीर, ब्रह्मचर्यव्रत धारी सेठ मोतीलाल मूलजी आपके दर्शन करने के लिए, राधनरपुसे आये । उनका विचार श्रीसिद्धाचलजीका संघ निकालनेका था । उसमें शामिल होनेके लिए उन्होंने आपसे प्रार्थना की । आपके साथ सेठ मोतीलालजीका भाईकासा संबंध था । राधनपुरमें जब आप दीक्षा लेनेसे पहले और पीछेसे भी गुरु महाराज श्रीहर्षविजयजीके पास अध्ययन करते थे तब सेठ मोतीलालजी भी उन्हीं सद्गुरुके चरणकमलमें बैठकर आपके साथ ही अध्ययन करते थे। दोनोंका, एक गुरुके शिष्य होनेसे, इतना अधिक स्नेह था कि, यथासाध्य दोनों साथ ही रहते और अध्ययनके समय एक यदि गुरु महाराजके दाहिनी तरफ बैठते थे तो दूसरे बाईं तरफ़ । इस लिए यदि आपकी इच्छा न होती तो भी संघमें जाना स्वीकारना पड़ता; परन्तु यहाँ तो साथ साधुओंकी इच्छानुसार आप पहलेहीसे दादाकी यात्रा करनेके लिए इच्छुक थे, इस लिए संघके साथ चलनेकी सेठ मोतीलालजीकी विनतीको तत्काल ही स्वीकार कर लिया । सेठ प्रसन्न होते हुए चले गये । इस चौमासेमें आपके साथ ( १ ) तपस्वीजी महाराज
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