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आदर्श जीवन।
भरूचसे विहार करके आप झगड़िया तीर्थपर पधारे। आपके साथ पंन्यासजी श्रीसिद्धिविजयजीके शिष्य मुनि श्रीमेघविजयजी भी झगड़ियाजी तक आये थे । यात्रा करके आपने सूरतकी तरफ़ विहार किया और वे वापिस भरुच चले गये। __ बड़े समारोहके साथ आपका सूरतमें नगर प्रवेश हुआ। करीब दो घंटे आप छापरियासेरीमें बिराजे । उसी समय प्रवतेकजी १०८श्रीकान्तिविजयजी महाराज और मुनि श्री १०८ श्री हंसविजयजी महाराज एवं पंन्यासजी श्री १०८ श्रीसंपत्तिविजयजी महाराज सपरिवार वहाँ पधारे । आपने तीनों महात्माओंके चरणकमलमें सादर वंदना करके अपने आपको धन्य माना।
हमारे चरित्रनायक, कान्तिविजयजी महाराज और हंसविजयजी महाराज तीनों ही प्रभावक पुरुष हैं और तीनोंको ही अपनी गोदमें खिलानेका मान बड़ोदेको है । तीनों एक साथमें जब जुलूसके साथ रवाना हुए हैं उस समयका आनंद अद्वितीय था। लोगोंमें भी अभूतपूर्व उत्साह था। जुलूस जब गोपीपुरेमें पहुँचा तब उस समयमें पंन्यास और वर्तमानमें आचार्य श्री १०८ श्रीआनंदसागरजी महाराज एवं अन्यान्य साधु महात्मा भी-जो उस समय उस उपाश्रयमें विराजमान थे-शामिल हो गये। उस जुलूसमें करीब ४० साधु महाराज और करीब इतनी ही साध्वियाँजी महाराज थीं।
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