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आदर्श जीवन।
.. (२) सभी एकड़ावाले तथा एकड़ासे विपरीत वर्ताववाले तथा पत्रिीसी आदि सभी एकतासे, संपसे बिगड़ता हुआ धार्मिक काम सुधारनेके लिए बाध्य हैं; और आजके बाद जो कोई एकड़ासे विरुद्ध आचरण करेगा उसको जाति इकट्ठी हो जो मुनासिब ठहराव करेगी उसके अनुसार वर्तना पड़ेगा। अर्थात् इस विषयमें जातिको अख्तियार दिया जाता है कि जाति चाहे तो उसे जातिसे अलग कर दे और चाहे तो उससे उसकी योग्यताके अनुसार चाहे जिस खातेके लिए दंड ले, अथवा उसे माफ कर दे।
(३) एकड़ावालोंने, एकड़ासे विपरीत चलनेवालोंने अथवा पात्रीसीने, किसीने भी मुझसे, अपनी किसी तरहके दुःखकी बात नहीं कही थी; मगर मैंने धर्मकी वृद्धिके बदले हानि होते देख उनसे कहा और मेरे कहनेसे सभीने सच्चे अन्तःकरणसे उद्योगकर मेरे कहनेके माफिक वर्ताव करनेकी मंजूरी दे मुझे ऐसे शुभ काममें भाग लेनेका सम्मान दिया है । मैं आशा करता हूँ कि तुम सभी पालनपुरके निवासी, मंदिर-आम्नायके सुश्रावक अपने वचनको पालनेके लिए और धर्मकी खातिर इस किये हुए ठहरावको सच्चे अंतःकरणसे मान दोगे और अबसे फिर उपयुक्त विषयमें कभी भी द्वेष नहीं करनेके संबंधमें अपने मनमें प्रतिज्ञा धारण करोगे।
(४) आज स्वर्गवासी गुरु महाराज तपगच्छाचार्य श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद मूरि (आत्मारामजी ) महाराज साहबके
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