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आदर्श जीवन ।
दैवयोगसे श्रीसोहनविजयजी महाराजकी आँखों में दर्द हो गया । विवश आपको आठ दिन वहीं ठहरना पड़ा । आँखोंका रोग ऐसा नहीं था कि उसकी अवहेलना की जाती । बगैर आँखोंके मार्ग कैसे देखा जा सकता था ? खिवाईसे रवाना होनेके बाद आपने अमृतसरके सिवा दूसरी जगह कहीं भी एक रातसे ज्यादा विश्राम नहीं लिया था ।।
अमृतसरसे विहार कर आप लाहोरमें पहुँचे और उसी दिन शामको वहाँसे रवाना होकर रावीके किनारेपर सिक्खोंकी धर्मशालामें पहुँचे । उस जगह मालूम हुआ कि, मध्यस्थ लोगोंने फैसला दे दिया है और उन्होंने आत्मारामजी महाराजके बनाये हुए ग्रंथको सत्य बताया है । गुजराँवालाकी पूरी कार्रवाई उत्तरार्द्धमें 'गुजराँवालाका शास्त्रार्थ' हेडिंगवाले निबंधमें दी गई है।
आप आषाढ़ सुदी ११ सं. १९६५ के दिन गुजराँवालामें पहुँचे । श्रावकोंने बड़े उत्साहके साथ स्वागत किया और जुलूसके साथ आपको शहरमें ले जाना चाहा । आपने कहा:-"श्रीआचार्य महाराज, श्रीउपाध्यायजी महाराज
और श्रीचारित्रविजयजी महाराजसे वृद्ध, बड़े और रत्नाधिक पूज्य यहाँ विराजमान हैं, इस लिए मैं बड़ोंके सामने, जुलूससे जाकर, उपस्थित होना अनुचित समझता हूँ।"
श्रीसंघने आचार्यश्री आदिसे प्रार्थना की । उन्होंने समयानुकूल योग्य उदारता दिखाई और आपको यह कहलाया
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