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आदर्श जीवन ।
मुन्सिफ साहब नमस्कार करके चले गये । तबसे वे रोज व्याख्यानमें आते थे । एक दिन वे देरसे आये । देखते क्या हैं कि दो पुलिकसे मनुष्य श्रोताओंके पीछेकी तरफ बैठे हुए हैं। उन्हें बुलाया और पूछा:- “ पूछा:- “ तुम यहाँ क्यों आये हो ? "
उन्होंने उत्तर दिया:-“ हाकिमके हुक्मसे । ” मुन्सिफ साहब ने कहा :- " तुम आराम से बैठो । यहाँ तुम्हारी दाल न गलेगी । मैं यहाँ रोज व्याख्यानमें आता । हमेशा कुछ न कुछ नयापन व्याख्यानमें रहता है । इनका व्याख्यान श्रोताओंकी भलाई के लिए होता है। उनके मनमें किसी किसमका लालच नहीं है । लालच हो ही क्यों ? जिन्होंने दुनियाको फानी - नाशमान समझकर इससे किनारा कर लिया है, जो पैसे टकेको कभी स्पर्श नहीं करते । जो अनेक घरोंमेंसे थोड़ी थोड़ी भिक्षा लेकर पेट भरते हैं, जो नंगे पेर फिरते हैं, जो कभी किसी सवारीपर नहीं चढ़ते, जो एक ठिकाने नहीं रहते, जिनके रहनेका कोई नियत स्थान नहीं, जो रमते राम हैं, जो कोई किसी गाँव में या शहरमें ठहरनेको जगह दे देता है तो वहाँ ठहर जाते हैं, अन्यथा वृक्षके नीचे ही रात गुजार लेते हैं, जो भोजनकी तरह ही वस्त्र भी माँगकर ले आते हैं अर्थात् गृहस्थ अपने लिए कपड़ा लाता है उसमेंसे कुछ बच रहता है तो ले लेते हैं, उनके लिए लाया हुआ कपड़ा कभी नहीं लेते, जो कीमती या भड़कीला कपड़ा नहीं लेते, जो
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