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आदर्श जीवन
दूसरीका नाम है ' भीमज्ञानत्रिंशिका' पहलीमें संक्षेपसे और दूसरीमें विस्तारके साथ यह सिद्ध किया गया है कि, वेदादि शास्त्रोंमे गोमेध, नरमेध और अश्वमेधका विधान है और गौ, मनुष्य और घोड़ेका हवन करना चाहिए। इतना ही क्यों वेदादि शास्त्रोंमें मांसभक्षणका भी स्पष्ट विधान है। इन बातोंको सिद्ध करनेके लिए आपने अपनी तरफसे कुछ न लिख कर प्राचीन शास्त्रोंके-वेदों, भाष्यों, मूत्रों, स्मृतियों और उन पर की गई टीकाओंके वाक्य उद्धृत किये हैं। साथ ही हिन्दुओंके प्रसिद्ध विद्वान पंडित भीमसेनजी, पं० ज्वालाप्रसादजी, लोकमान्य तिलक आदिकी सम्मतियाँ भी-जो शास्त्रोंके आधारपर दी गइ हैं-उद्धृत की गई हैं। ये प्रमाण १८५ ग्रंथों और पत्रोंसे संग्रह किये गये हैं।
सं० १९६५का बाईसवाँ चौमासा आपने गुजराँवालाहीमें आचार्य श्रीविजयकमलमूरिजीके तथा श्रीउपाध्यायजी महाराजके चरणोंमें किया था। उस समय वहाँ कुल चौदह साधु थे । उनके नाम ये हैं,
(१) आचार्य महाराज श्री १०८ श्रीमद्विजय कमल मूरिजी (२) १०८ श्रीउपाध्यायजी महाराज श्रीवीरविजयजी (३)१०८ श्रीवृद्ध मुनि महाराज श्रीचारित्रविजयजी (४) हमारे चरित्रनायक १०८ मुनि श्रीवल्लभविजयजी महाराज (५) मुनि श्रीअमीविजयजी महाराज (६) मुनि श्रीरविविजयजी महाराज (७) मुनि श्रीहिम्मतविजयजी.
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