________________
१८६
आदर्श जीवन
mhroom
बीच बीचमें कभी कभी श्रीउपाध्यायजी महाराज और अन्यान्य साधु महाराज भी व्याख्यानकी कृपा करते रहे थे; ज्यादातर व्याख्यानका भार आपके शिष्य रत्न श्रीललितविजयजी पर ही रहा था । मुख्य कारण इसका यह था कि आचार्य महाराज और उपाध्यायजी महाराजकी तबीअत गरमीके सबबसे जैसी चाहिए वैसी अच्छी नहीं रहती थी. श्रीचारित्रविजयजी महाराज वृद्धावस्थाके कारण असमर्थ थे और अन्य जो साधु थे वे गुजराती होनेके कारण पंजाबमें व्याख्यान नहीं बाँच सकते थे।
श्रीसंघके आग्रहके कारण आचार्यश्रीने पर्युषण पर्वमें कल्पमूत्रके प्रथम व्याख्यानकी और संवत्सरीके व्याख्यानकी अर्थात् बारसां-कल्पसूत्र मूलमात्रके व्याख्यानकी कृपा की थी; शेष कल्पसूत्रके व्याख्यान दोनों गुरु शिष्योंने यानी आपने और श्रीललितविजयजीने ही समाप्त किये थे। ' ___ आपकी कल्पसूत्र बाँचनेकी छटा अजब है । यह स्वर्गीय गुरुदेवकी छटाका अनुकरण है। इसे देखकर मुनि श्रीलब्धिविजयजी ( वर्तमानमें श्रीविजयलब्धिमूरिजी ) चकित हो गये थे। उन्होंने कहा:-" आपका कल्पसूत्र सुनानेका ढंग बहुत ही बढ़िया है । मैं भी आगेसे इसी ढबसे बाँचा करूँगा। मेरा उद्देश्य आपके व्याख्यान सुननेमें, आपकी व्याख्यानशली, सीखना था सो वह उद्देश्य पूर्ण होगया।"
व्याख्यानसे फुर्सत पाकर आपने गुजराँवालामें दो पुस्तकें तैयार की। उनमेंसे एकका नाम है-'विशेषनिर्णय' और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org