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आदर्श जीवन ।
चौमासा समाप्त होने पर जीरासे विहार कर मुनि महाराज श्रीहीरविजयजी आदि मुनिमंडल सहित आप पुनः रायकोट पधारे। बड़ी धूम धाम से आपका स्वागत हुआ । जैनोंके साथ ही अनेक सनातनी और मुसलमान भी शामिल हुए थे | पंन्यास श्रीसुंदरविजयजी और सोहनविजयजी जीरासे सीधे पट्टी गये । वहीं कोदर कालीदासको उन्होंने सं० १९६२ के मार्गशीर्ष वदी ५ के दिन आपके नाम की दीक्षा दी । नाम उमेद विजयजी रक्खा | हमारे चरित्रनायकने एक मास तक रायकोटहीमें निवास किया । ' लोगस्स ' सूत्रपाठके ऊपर ही आप महीनेभर तक विवेचन करते रहे । श्रीयुत दसौंदीरामजीने उस समय एक भजन लिखा था उसे हम यहाँ आत्मानंद जैन पत्रिकासे उद्धृत करते हैं ।
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भजन ।
चाल - क्यों डूबे मँजधार क्षमा है तेरे तरनको ।
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धन भाग तेरे अय रायकोट ! मुनि वल्लभविजय आये || अंचली || सुन करके सतगुरुका आना, हर्ष सभीने मनमें माना ।
मैनी तक बहु पुरुष गुरुके लेनेको धाए ॥ १ ॥ धन भाग० ॥ 'हीरविजय' गुरु 'वल्लभ' आये, संग 'कपूरविजय' को लाये । देवीचंदने खोल चौबारा आसन लगवाए || २ || धन० ॥ धन चंबामल भाग तुम्हारा, नित होते सतगुरु दीदारा । खुले मकाँके भाग चरण जो गुरुओंने लाये ॥ ३ ॥ धन० ॥
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