________________
आदर्श जीवन।
१५९
-
-
___ लाहोरसे आप अमृतसर पधारे । शहरमें बड़ी धूमके साथ आपका जुलूस निकला । सं० १९६४ का इक्कीसवाँ चौमासा आपने अमृतसरमें किया। आनंदके साथ धर्मध्यानमें समय बीतने लगा । छठ, अट्ठम, बेले, तेले, एकासन, आंबिल आदिक बहुतसी तपस्याएँ हुई। श्रावकोंके हृदय धर्मभावनाओंके आनन्दमें निमग्न हो रहे थे । साधुओंके हृदयोंमें भी श्रावकोंका आनंदोल्लास देख कर प्रसन्नता थी। ___ इसी चौमासेमें आपके गृहस्थावस्थाके बड़े भ्राता खीमचंद भाई बड़ौदेके श्रीसंघका विनतीपत्र और आचार्य १००८ श्रीविजयकमलमूरिजी महाराजका एवं उपाध्याय श्रीवीरविजयजी महाराजका गुजरातकी तरफ विहार करनेका आदेश पत्र लेकर आये । खीमचंदभाईके पहुँचनेसे साधुमंडलमें प्रसन्नता छा गई । आपके हृदयमें भी आनंदकी लहरी उठे बिना न रही । मगर श्रावक मंडलमें उदासी छा गई । उसने विनती की
" महाराज ! आप हमें यहाँ किसके आधार छोड़कर पधारते हैं ? हमें तो गुरु महाराज आपहीके भरोसे छोड़कर गये हैं । हम आपको कहीं न जाने देंगे।" ____ आपने फर्माया--" आप लोग जानते हैं कि मैं उन्नीस बरससे पंजाबमें हूँ । दीक्षा ले कर मैं गुरु महाराजकी चरणसेवामें रहा और उनका देहान्त होने पर भी मैं यहीं विचरण कर रहा हूँ । कई दिनोंसे मैं एक बार सिद्धाचलजी जाकर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org