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आदर्श जीवन ।
दूसरे दिन फिर रवाना हुए । गरमी उसी तरह पड़ रही थी। आह ! यही तो आपकी साधु चोकी परीक्षा थी। परिसह कैसे शान्तिके साथ सहे जाते हैं इसीका तो यह अमली सबक़ था ! कवि भूधरदासजीने साधुवंदना करते कैसा सुंदर लिखा है
" सूखे सरोवर जलभरे, सखें तरंगिणीतोय ।
बाटें बटोही ना चलें, जब घाम गरमी होय ॥ तिस काल मुनिवर तप तपें, गिरिशिखर ठाड़े धीर ।
वे साधु मेरे उर बसो, मेरी हरो पातक पीर ।।
शीतऋतु जोरे अंग सब ही सकोरे तहाँ, ____ अंगको न मोरे नदी धोरे धीर जे खरे । जठकी झकोरे जहाँ अंडा चील छोरे पश,
पंछी छाँह लोरे गिरि कोरे तप जे धरे । घोर घन घोर घटा चहुँ और डोरे, ___ ज्यू ज्यू चलत हिलोरे त्यू त्यूँ फोरे बल वे अरे । देहनेह तोरें परमारथ मैं प्रीति जोरें,
ऐसे गुरुओंरे हम हाथ अंजुली करें ॥ २ ॥ आप सवारीमें चढ़ नहीं सकते थे । पैरोंकी रक्षाके लिए जोड़े-कपड़ेके जोड़ेतक-पहन नहीं सकते थे; शरीरको धूपसे बचानेके लिए छत्री नहीं लगा सकते थे; गरमीकी शिद्दतसे सूखते हुए गलेको, किसी कूए, बावड़ी या राहगीरोंके लिए लगी हुई प्याऊसे, पानी पीकर, तर नहीं कर सकते थे । झरने
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