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आदर्श जीवन ।
१७७ .......rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrammar हारे थे । लुधियाने में उन्हें नीचा देखना पड़ा था और अमृतसरमें तो बड़े ही फजीहत हुए थे। इस लिए वे मन ही मन श्वेताम्बरोंसे नाराज थे और बदला लेनेका मौका देख रहे थे; मगर हमारे चरित्रनायककी उपस्थितिमें उन्हें अवसर नहीं मिलता था।
इधर स्थानकवासियोंके मनकी यह हालत थी उधर श्वेतांबर अपने गुरुकी विजयसे प्रसन्न थे। जहाँ तहाँ उत्सव होते थे और आनंदकी बधाइयाँ बजती थीं।
इस तरहकी दशामें सं० १९६५ की वैशाख शुक्ला १० ता.७ मई सन् १९०८ ईस्वीको गुजराँवालामें बड़ी धूमधामके साथ स्वर्गीय आचार्य महाराज श्री १००८ श्रीविजयानंद मूरिजीकी वेदी प्रतिष्ठा १०८ श्रीआचार्य महाराज श्रीविजयकमल मूरिजीके हाथसे हुई । उसमें सार्वजनिक-पब्लिक व्याख्यान हुए। व्याख्यानोंमें यह बात आये बिना कैसे रह सकती थी कि आचार्यश्री पहले स्थानकवासी थे? सारे शहरमें श्वेतांबरोंकी प्रशंसाका नया दौर प्रारंभ हुआ।
स्थानकवासी इस समय निर्भय हो गये थे । जिन महात्माके आगे उनको जबान खोलनेका हौसला नहीं पड़ता था वे पंजाबसे रवाना हो चुके थे। उन्होंने बदला लेना स्थिर किया; स्थिर करके भी वे स्वयं मैदानमें आनेकी हिम्मत न कर सके। उन्होंने स्वर्गीय आत्मारामजी महाराजके बनाये हुए अज्ञानतिमिरभास्करके उस हिस्सेका उर्दूमें अनुवाद करके छपवाया, जिसमें हिन्दुग्रं
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