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आदर्श जीवन |
संवत् १९६५ के वैशाख सुदी ६ को बिनौलीमें, अंबाला शहर से लाला गंगारामजी श्रीशान्तिनाथ स्वामीकी प्रतिमा ले आये थे | बड़े उत्सव के साथ प्रतिमाजका नगर प्रवेश कराया गया था । इस उत्सव में बिनौलीके और आसपास के गाँवोंके दिगंबर जैनोंने भी बड़े उत्साहसे भाग लिया था ।
उसी दिन गुजरांवाला में आचार्य महाराज श्रीविजय कमल सूरिजी और उपाध्यायजी महाराज श्रीवीरविजयजी आदि मुनिराजोंकी उपस्थितिमें स्वर्गीय आचार्य महाराज श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद सूरीश्वरजी ( आत्मारामजी) के समाधि मंदि - रमें चरणपादुका स्थापित करनेका उत्सव हुआ था । आपने बिनौली के आनंदको ही गुजरांवालाका आनंद मान लिया था। गुरुभक्तिके उपलक्षमें आपने उस समय जो स्तवन बनाकर भेजे थे उनमें से एक हम यहाँ देते हैं
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( देशी - वारनाकी )
वारी जाऊँरे सद्गुरुजी तुम पर वारना जी ॥ अंचली || आतमरामजी नाम धराया, आतमको आराम बताया । आतमराम समा सुखदाया, अन्तर घटमें धारना जी ॥ वा० ॥ १ ॥ मिथ्यामततम दिनकर जाना, कामज्वर धन्वंतरी माना । सत् चित् आनंद पदका पाना, सागर लोभ निवारना जी || वा ० ॥२॥ बाह्य निमित्त गुरु उपकारी, कारण मुख्य निजातमधारी । आतम ही आतमपदकारी, सीधा अर्थ विचारना जी ॥ वा ० ॥ ३ ॥
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