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आदर्श जीवन ।
यहाँके रईस लाला मुसद्दीलालजीने अपनी दुकानें मंदिर जीके लिए दीं और उन्हींमें मंदिर बनवानेका विचार किया। शुभ मुहूर्तमें श्रीजिनमंदिर बनवाना प्रारंभ ो गया था, वह मंदिर बनकर तैयार हो चुका है । प्रतिष्ठा करानेकी एक बार तैयारी की गई थी, मगर किसी कारणवश उस समय न हो सकी। लाला श्रीचंद्रजी और बाबू कीर्तिप्रसादजी बी. ए. एल एल.बी. आदि लाला मुसद्दीलालजीके सुपुत्रोंकी यही उत्कट अभिलाषा है कि, मंदिरजीका काय जैसे हमारे चरित्रनायककी उपस्थितिमें हुआ है वैसे ही प्रतिष्ठा भी आपहीकी उपस्थितिमें हो । उनका खयाल है कि पहले हमारा काय इसी लिए रुक गया था कि, उस समय आप उपस्थित न थे, न हो सकते थे; क्योंकि उस समय आप गुजरातमें विचरते थे।
उनकी इस भावनाको पूर्ण करनेहीके लिए आपने, अभी लाहोरसे विहार करते समय सोचा था कि गुजराँवालामें गुरु महाराज श्रीआत्मारामजी महाराजके समाधिमंदिरकी यात्रा कर पाँच सात दिन गुजराँवालामें ठहर, सीधे मेरठकी तरफ विहार कर देना और यह चौमासा दिल्लीमें या आसपासके किसी क्षेत्रमें बिता चामासे बाद मंदिरकी प्रतिष्ठाका प्रबंध कर देना । मगर क्षेत्रस्पर्शना बलवती है ! श्रीगुरु महाराजकी कृपासे गुजराँवालामें 'श्रीआत्मानंद जैन गुरुकुलपंजाब' की स्थापना करनेका प्रबंध हो गया, इस लिए आपको वहीं ठहर जाना पड़ा । गुजराँवाला और विनौलीका अन्तर लगभग ४०० माइलका है ।
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