________________
आदर्श जीवन ।
फूली नहीं समाती नगरी, दर्शनको मिल आई सगरी । मनमोहन छबि देख सभोंके मन आनंद छाये ॥ ४ ॥ धन० ॥ सब भाइयोंने अरज गुजारी, सफल करो गुरु आश हमारी । दो व्याख्यान सुनाय सभी जन सुननेको आये ॥ ५ ॥ धन० ॥ सतगुरुने व्याख्यान सुनाया, अर्थ सहित सबको समझाया । ज्ञान झड़ी दई लाय भाग धन उनके जो न्हाये ॥ ६ ॥ धन० ॥ रौनक दिन दिन होती भारी, सुनने आती नगरी सारी । ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य श्रावक सबने चित लाये ॥ ७ ॥ धन० ॥ लाला गूजरमल नित आवे, सच्चे दिलसे प्रेम लगावे । पंडित धरनीधरका कोई दिन खाली नहीं जाये ॥ ८ ॥ धन० ॥ माधोरामको प्रेम है भारी, शादीराम गुरु आज्ञाकारी । घु मल चौधरी सुन सुन बलिहारी जाये ॥ ९ ॥ धन० ॥ गंगाराम गुरु मनमें भाये, बारुमल्ल गुरु देख सुहाए । आशानंद नंदलाल पंडित जीवामल हर्षाये ॥ १० ॥ धन० ॥ अर्जुनदास आनंद हो सुनके, ऋषिराम प्यासे दर्शनके । मनीराम मुकुंदीलाल नित सत गुरु गुण गाये ॥ ११ ॥ धन० ॥ मल्लूमल्ल गुरुनाम सिमरते, सादिराम चरणों सिर धरते । डालीराम और रंगीराम गुरु चरणन चितलाए ॥ १२ ॥ धन० ॥ गुद्दामल गुरुका मतवाला, जगतामलको प्रेम है आला । हो आनंद कपूरचंद जब गुरुदर्शन पाये ॥ १३ ॥ धन० ॥ प्रेममें नगरी हुई मतवारी, सतगुरुपे जाती बलिहारी । किस किसका करूँ बयान सभी नर मनमें हर्षाये ॥ १३ ॥ धन० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org