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आदर्श जीवन।
आये थे । वहीं ईडर ( महीकाँठा) के एक गृहस्थ कोदर कालीदास आपके पास दीक्षा लेनेकी अभिलाषासे आये थे। जीराके नायब तहसीलदार सरदार शेरसिंहजी अक्सर आपके पास तत्वचर्चा और धर्मश्रवण करनेके लिए आया करते थे। इस चौमासेमें आपने पंजाबके श्रावकोंकी विज्ञप्तिको ध्यानमें लेकर निनानवे प्रकारी पूजा बनाई। .. वहाँ पर स्कूलमें एक फारसीके अध्यापक थे। वे बड़े ही विद्वान, सज्जन और गुणग्राही थे । लोग उन्हें खलीफाजी कहा करते थे । नाम उनका माघीरामजी था । उन्होंने हमारे चरित्रनायककी प्रशंसामें एक गज़ल लिखी थी। वह यहाँ दी जाती है।
बननेकी हुई । मगर वहाँ अपनी इच्छाको पूरी करनेका मौका न देख चुप रहे । वहाँसे सोहनलालजीके साथ पटियाला गये । अवसर देख वहाँसे ये हमारे चरित्रनायकके पास पहुंचे और चरण पकड़ कर बोले कि, मेरा निस्तार कीजिए । आपने कहा,-"तुम थोड़े दिन गुजरातमें तीर्थयात्रा कर आओ । ये तीर्थयात्रार्थ गुजरातमें आये । पाटणमें १०८ प्रवर्तकजी श्रीकान्तिविजयजी महाराजके दर्शन कर भोयणीमें पं० श्रीललितविजयजी महाराजके पास आये । वहाँसे मुनि श्रहिंसविजयजी महाराजके साथ सिद्धाचलजीकी यात्रा की ! मांडलतक उनके साथहीमें रहे । फिर तपस्वीजी श्रीशुभ विजयजीसे सं० १९६३ में दसाडा (गुजरात) गाँवमें संवेग दीक्षा ली । नाम सोहनविजयजी रक्खा । हमारे चरित्रनायकके शिष्य कहलाए । अब आप उपाध्यायजी हो गये हैं।
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