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आदर्श जीवन ।
एक मासकल्प समाप्त होने पर आचार्यश्रीने कसूरकी तरफ विहार किया और हमारे चरित्रनायकको वहीं मुनि श्रीचरित्रविजयजी महाराजके साथ अध्ययन के लिए ठहरनेकी आज्ञा दी ।
कसूर में मासकल्प करके आचार्यश्री अमृतसर पधारे । हमारे चरित्रनायक भी श्रीचारित्रविजयजी महाराजके साथ विहारकर जंडियाला गुरुमें पधारे । यहाँ आपने एक नैयायिक पंडितसे न्यायबोधिनी और चंद्रोदय इन दो न्याय शास्त्र के ग्रंथोंका आध्ययन किया । कुछ दिनोंके बाद आचार्यश्री भी अमृतसर से विहार कर वहीं पवार गये । वहाँ आपने और १०८ श्रीकमलविजयजी महाराजने सहाध्यायी होकर आचार्यश्री के पास सम्यक्त्व सप्ततिका पढ़ना शुरू किया ।
कुछ समय बाद आचार्यश्री अरनाथ स्वामीके मंदिरकी प्रतिष्ठा करनेके लिए अमृतसर में पधारे । सं० १९४८ के वैशाख सुदी ६ के दिन बड़े समारोहके साथ प्रतिष्ठा हुई । हमारे । हमारे चरित्रनायक भी आचार्यश्री के साथ प्रतिष्ठा संबंधी कामोंमे लगे रहनेसे कुछ अध्ययन न कर सके । प्रतिष्ठा के बाद जंडियाला होकर प्रथम स्थिर किये हुए विचार अनुसार आचार्यश्री पट्टीमें पधारे । सं० १९४८ का चौमासा वहीं किया । हमारे चरित्रनायकका पाँचवाँ चौमासा पट्टीहीमें हुआ । इस चौमासेमें आचार्यश्रीके -साथ नौ साधु थे । (१) श्री कुमुदविजयजी महाराज ( २ )
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