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आदर्श जीवन।
हैं। अन्यान्य हिन्दु शास्त्रोंकी तरह आपने वसिष्ठ स्मृति भी जरूर देखी होगी । उसमें लिखा है कि, ब्रह्मचारी-स्नातक राजाकी अपेक्षा भी पूज्य और बड़े होते हैं । एक ओरसे राजा आता हो और दूसरी ओरसे ब्रह्मचारी आता हो तो राजाको चाहिए कि, वह ब्रह्मचारीको प्रणाम कर एक ओर हट जाय और उसे निकल जाने दे । गोस्वामी तुलसीदासजीने भी कहा है कि" एक घड़ी आधी घड़ी आधीमें भी आध ।
तुलसी संगत साधकी, कटे कोटि अपराध ॥" भटजी आपकी मधुर और ऋषियोंके वाक्योंसे मिश्रित वाणी सुनकर ठंडे पड़ गये, मगर फिर भी बोले:-" महाराज ! आज साधुओंके वेषमें अनेक लुच्चे लफंगे फिरते हैं; इसीलिए हम किसी साधुवेषधारीको यहाँ ठहरने नहीं देते।" __ आप बोले:-" पंडितजी तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि धर्मपरायणा भारत वसुंधरासे अब धर्म उठ ही गया है। लाखों बरसोंसे जिस हिन्दुस्थानमें हजारों त्यागी मुनि होते आये हैं उसी भारतमें क्या आज उनका अभाव ही हो गया है ? सुनिए,-मैं भी जैन मजहबका एक साधु हूँ। हमारे साधुओंमें द्रव्यके नाम एक फूटी बदाम भी नहीं रक्खी जाती फिर कामिनीकी तो बात ही क्या है ? और तो और जिस मकानमें स्त्री रहती है उस मकानमें साधु ठहरते भी नहीं हैं । गरमीका कितना ही जोर हो, दिनभर अन्नजल
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