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आदर्श जीवन ।
श्रीलब्धिविजयजी और श्रीविवेकविजयजी महाराजको वहीं छोड़ श्रीहीरविजयजी महाराज, श्रीस्वामी सुमतिविजयजी महाराज और श्रीललितविजयजी महाराजको अपने साथ ले लाहौरकी तरफ़ रवाना हुए ।
रास्तेके छोटे बड़े गाँवोंमें होते हुए जब आप बर्कियाँ नामक गाँव में पहुँचे तब दुपहर हो गई थी । आपका मन उस गाँवमें प्रवेश करते ही उदास हो आया । कारण कुछ ज्ञात न हुआ । मगर थोड़ी दूर जानेपर आपने देखा कि एक मकान में एक काटा हुआ बकरा लटक रहा है और बुरी तरहसे लोग उसके टुकड़े कर रहे हैं । आपका दयापूर्ण हृदय भर आया, मुखसे एक निःश्वास निकला और अपने साथके साधुओंसे बोले:- “ यह गाँव साधु ओंके ठहरने लायक नहीं है । " मगर धूप तेज थी, साथके साधु थक गये थे इसलिए विवश धर्मशालाकी एक कोट - ड्रीमें जा ठहरे ।
आप इस बातको सोच रहे थे कि इस क्रूरताको करनेवालेजीवोंका कैसे कल्याण होगा। इतनेहीमें मदिरामें मत्त हाथोंमें भाले लिए हुए कई पुरुष उधरसे निकले । उनके वार्तालापसे मालूम हुआ कि वे शिकार करने जा रहे हैं ।
थोड़ी ही देर में वहाँ एक स्त्री आई और प्रणाम करके बोली:- " सन्तो! तुम यहाँसे चले जाओ । यह गाँव चोरोंका है । मेरा स्वामी दिनमें मुसाफ़िरों को आराम पहुँचाता है मगर
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